Saturday, June 27, 2015

हाई बीपी के लिए तीन योग....

    हाई बीपी से देश करीब १० करोड़ लोग पीड़ित है। हाई बीपी का मुख्य कारन है तनाव,तनाव के लिए तीन प्राणायाम बहुत ही महत्वपूर्ण है, अनुलोमविलोम,भ्रामरी और शवासन  प्राणायाम। 
    रोज ३ से ४ लीटर पानी पीना चाहिए। लोकी का जुश साथमे आमला मिलाकर पीना चाहिए ,ध्यान रखिये लोकी कड़वी नहीं होनी चाहिए। इसे पीनी से हाई बीपी कंट्रोल होता है। 

अनुलोमविलोम



   दाएँ हाथ को उठकर दाएँ  हाथ के अंगुष्ठ के द्वारा दायाँ स्वर तथा अनामिका व् मध्यमा अंगुलियों के द्वारा बायाँ स्वर बन्द करना चाहिए। हाथ की हथेली नासिका के सामने न रखकर थोड़ा ऊपर रखना चाहिए।
विधि:
      अनुलोम-विलोम प्राणायाम को बाए नासिका से प्रारम्भ करते है। अंगुष्ठ के माध्यम से दाहिनी  नासिका को बंध करके बाई नाक से श्वास धीरे-धीरे अंदर भरना चाहिए। श्वास पूरा अंदर भरने पर ,अनामिका व् मध्यमा से वामश्वर को बन्ध  करके दाहिनी नाक से पूरा श्वास बाहर छोड़ देना चाहिए। धीरे-धीरे श्वास-पश्वास की गति मध्यम और तीव्र करनी चाहिए। तीव्र गति से पूरी शक्ति के साथ श्वास अन्दर भरें व् बाहर निकाले व् अपनी शक्ति के अनुसार श्वास-प्रश्वास के साथ गति मन्द,मध्यम और तीव्र करें। तीव्र गति से पूरक, रेचक करने से प्राण  की तेज ध्वनि होती है। श्वास पूरा बाहर निकलने पर वाम स्वर को बंद रखते हुए दाए नाक से श्वास पूरा अन्दर भरना चाहिए तथा अंदर पूरा भर जाने पर दाए नाक को बन्द करके बाए नासिका से श्वास बाहर छोड़ने  चाहिए। यह एक प्रकियापुरी हुई। इस प्रकार इस विधि को सतत करते रहना। थकान होने पर बीच में थोड़ा विश्राम करे फिर पुनः प्राणायाम करे। इस प्रकार तीन मिनिट से प्रारम्भ करके  इस प्राणायाम को १० मिनिट तक किया जा सकता है।



भ्रामरी प्राणायाम(BHRAMRI PRANAYAM)




विधि:
        श्वास पूरा अन्दर भर कर मध्यमा अंगुलियों से नासिका के मूल में आँख के पास दोनों ओर से थोड़ा दबाएँ, अंगूठो के द्वारा दोनों कानो को पूरा बन्ध कर ले। अब भ्रमर की भाँति गुंजन करते हुए नाद रूप में ओ३म का उच्चारण करते हुए श्वास को बाहर छोडदे। इस तरह ये प्राणायाम कम से कम  ३ बार अवश्य करे। अधिक से ११ से १२ बार तक कर सकते हो।
        मन में यह दिव्य संकल्प या विचार होना चाहिए की मुज पर भगवन की करुणा ,शांति व् आनंद बरस रहा है। इस प्रकार शुद्ध भाव से यह प्राणायाम करने से एक दिव्य ज्योति आगना चक्र में  प्रकट होता है और ध्यान स्वत: होने  लगता है।

लाभ:

        मानसिक तनाव,उत्तेजना,उच्च रक्तचाप,हदयरोग आदि दूर होता है। ध्यान  के लिए उपयोगी है। 

शवासन
विधिः  
   पीठ के बल सीधे भूमि पर लेट जाइए। दोनों पैरो में लगभग एक फुट का अन्तर हो तथा दोनों हाथो को भी जंघाओं से थोड़ी दूरी पर रखते हुए हाथों को ऊपर की और खोलकर रखें। आँखे बंध ,गर्दन सीधी ,पूरा शरीर तनाव रहित अवस्था में हो। धीरे-धीरे चार से पांच श्वास लम्बे भरें व् छोड़े। 


लाभ: 
        मानसिक तनाव ,उचरक्तचाप, हदयरोग तथा अनिद्रा के लिए यह आसन लाभकारी है। स्नायु-दुर्बलता ,थकान दूर करता है। कोई भी आसन करते हुए बीच-बीच में शवासन करने से शरीर में थकान दूर हो जाती है।

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