रोग उपचार प्रणायाम

१.     सूर्यभेदी प्राणायाम 

     ध्यानासन मैं बैठकर नासिका से पूरक करके तत्पश्वात् कुम्भक जालन्धर एवं मूलबन्ध के साथ करें ओर अन्त में बाए नासिका से रेचक करें। अंतः कुम्भक का समय धीरे-धीरे बढ़ाते रहिये। इस प्राणायाम को ३-७ से बढाकर १० तक बढ़ाइयें। ग्रीष्म ऋतु में इस प्राणायाम को अल्प मात्र में करें। 

लाभ: 
      शरीर में उष्णता तथा पिट कि वृद्धि होती है। वाट व् कफ से उत्पन होने वाले रोग ,रक्त व् त्वचा के दोष ,उदर-कृमि, कोढ़,सुजाक,छूत के रोग,अजीर्ण,अपच,स्त्री-रोग आदि में लाभदायक है। कुण्डलिनी जागरण में सहायक है। बुढ़ापा दूर रहता है। अनुलोम-विलोम के बाद थोड़ी मात्र मैं इस प्राणायाम को करना चाहिए। बिना कुम्भक के सूर्य भेदी प्राणायाम करने से हदयगति और शरीर की क्रियाशीलता बढ़ती है तथा वजन काम हो जाता है। इसके लिए इसके २७ चक्र दिन में २ बार करना जरुरी है। 


२.    चन्द्रभेदी प्राणायाम 
       इस प्राणायाम में बाए नासिका से पूरक करके, अंत:कुम्भक करें। इसे जालन्धर व् मूल बन्ध के साथ करना उत्तम है। तत्पश्वात् दाई नाक से रेचक करें। इसमें हमेशा चन्द्रस्वर से पूरक व् सूर्यस्वर से रेचक करते है। सूर्यभेदी इससे ठीक विपरीत है। कुम्भक के समय पूर्ण चन्द्रमण्डल के प्रकाश के साथ ध्यान करें। 

लाभ :
         शरीर में शीतलता आकर थकावट व् उष्णता दूर होती है। मन की उत्तेजनाओं को शांत करता है।  पेट (पित के कारण) में होनेवाली जलन मैं लाभदायक है। 

No comments:

Post a Comment